लेता हूँ मकतब-ए-ग़म-ए-दिल में सबक़ हनूज़
लेकिन यही कि रफ़्त गया और बूद था
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तंगी-ए-दिल का गिला क्या ये वो काफ़िर-दिल है
हैं आज क्यूँ ज़लील कि कल तक न थी पसंद
ताब लाए ही बनेगी 'ग़ालिब'
मौत का एक दिन मुअय्यन है
ज़माना सख़्त कम-आज़ार है ब-जान-ए-असद
देखना क़िस्मत कि आप अपने पे रश्क आ जाए है
हुस्न-ए-बे-परवा ख़रीदार-ए-माता-ए-जल्वा है
हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं
है बस-कि हर इक उन के इशारे में निशाँ और
रहमत अगर क़ुबूल करे क्या बईद है
हूँ गिरफ़्तार-ए-उल्फ़त-ए-सय्याद
लब-ए-ईसा की जुम्बिश करती है गहवारा-जम्बानी