क्यूँ जल गया न ताब-ए-रुख़-ए-यार देख कर
जलता हूँ अपनी ताक़त-ए-दीदार देख कर
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Wasi Shah
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Rahat Indori
Javed Akhtar
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1764) Peoples Rate This
ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं
ग़ैर लें महफ़िल में बोसे जाम के
दिल से तिरी निगाह जिगर तक उतर गई
कौन है जो नहीं है हाजत-मंद
है आरमीदगी में निकोहिश बजा मुझे
काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब'
जब तवक़्क़ो ही उठ गई 'ग़ालिब'
हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं
बहुत सही ग़म-ए-गीती शराब कम क्या है
है अब इस मामूरे में क़हत-ए-ग़म-ए-उल्फ़त 'असद'
भागे थे हम बहुत सो उसी की सज़ा है ये