क्यूँ गर्दिश-ए-मुदाम से घबरा न जाए दिल
इंसान हूँ पियाला ओ साग़र नहीं हूँ मैं
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नुक्ता-चीं है ग़म-ए-दिल उस को सुनाए न बने
गर्म-ए-फ़रियाद रखा शक्ल-ए-निहाली ने मुझे
छोड़ूँगा मैं न उस बुत-ए-काफ़िर का पूजना
कौन है जो नहीं है हाजत-मंद
रहिए अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो
फूँका है किस ने गोश-ए-मोहब्बत में ऐ ख़ुदा
इब्न-ए-मरयम हुआ करे कोई
ज़ुल्मत-कदे में मेरे शब-ए-ग़म का जोश है
नींद उस की है दिमाग़ उस का है रातें उस की हैं
हसद से दिल अगर अफ़्सुर्दा है गर्म-ए-तमाशा हो
रोने से और इश्क़ में बे-बाक हो गए
हम रश्क को अपने भी गवारा नहीं करते