किसी को दे के दिल कोई नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो
न हो जब दिल ही सीने में तो फिर मुँह में ज़बाँ क्यूँ हो
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लताफ़त बे-कसाफ़त जल्वा पैदा कर नहीं सकती
दहर में नक़्श-ए-वफ़ा वजह-ए-तसल्ली न हुआ
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
परतव-ए-ख़ुर से है शबनम को फ़ना की तालीम
की वफ़ा हम से तो ग़ैर इस को जफ़ा कहते हैं
आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे
मैं भला कब था सुख़न-गोई पे माइल 'ग़ालिब'
नाला जुज़ हुस्न-ए-तलब ऐ सितम-ईजाद नहीं
साए की तरह साथ फिरें सर्व ओ सनोबर
जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा
रफ़्तार-ए-उम्र क़त-ए-रह-ए-इज़्तिराब है
'ग़ालिब'-ए-ख़स्ता के बग़ैर कौन से काम बंद हैं