की मिरे क़त्ल के बाद उस ने जफ़ा से तौबा
हाए उस ज़ूद-पशीमाँ का पशीमाँ होना
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शुमार-ए-सुब्हा मर्ग़ूब-ए-बुत-ए-मुश्किल-पसंद आया
मज़े जहान के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं
दिल मिरा सोज़-ए-निहाँ से बे-मुहाबा जल गया
घर में था क्या कि तिरा ग़म उसे ग़ारत करता
लूँ वाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता से यक-ख़्वाब-ए-खुश वले
गई वो बात कि हो गुफ़्तुगू तो क्यूँकर हो
माना-ए-दश्त-नवर्दी कोई तदबीर नहीं
मिरी हस्ती फ़ज़ा-ए-हैरत आबाद-ए-तमन्ना है
कार-गाह-ए-हस्ती में लाला दाग़-सामाँ है
हमारे शेर हैं अब सिर्फ़ दिल-लगी के 'असद'
पी जिस क़दर मिले शब-ए-महताब में शराब
हम हैं मुश्ताक़ और वो बे-ज़ार