कहते हुए साक़ी से हया आती है वर्ना
है यूँ कि मुझे दुर्द-ए-तह-ए-जाम बहुत है
Gulzar
Wasi Shah
Habib Jalib
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2157) Peoples Rate This
ताब लाए ही बनेगी 'ग़ालिब'
हाँ अहल-ए-तलब कौन सुने ताना-ए-ना-याफ़्त
कहते हो न देंगे हम दिल अगर पड़ा पाया
मंज़ूर थी ये शक्ल तजल्ली को नूर की
सर पा-ए-ख़ुम पे चाहिए हंगाम-ए-बे-ख़ुदी
जिस ज़ख़्म की हो सकती हो तदबीर रफ़ू की
कह सके कौन कि ये जल्वागरी किस की है
अल्लाह रे ज़ौक़-ए-दश्त-नवर्दी कि बाद-ए-मर्ग
'ग़ालिब' हमें न छेड़ कि फिर जोश-ए-अश्क से
भागे थे हम बहुत सो उसी की सज़ा है ये
परतव-ए-ख़ुर से है शबनम को फ़ना की तालीम
देखना क़िस्मत कि आप अपने पे रश्क आ जाए है