कहते हैं जीते हैं उम्मीद पे लोग
हम को जीने की भी उम्मीद नहीं
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Habib Jalib
Rahat Indori
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Gulzar
Anwar Masood
Javed Akhtar
Allama Iqbal
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नफ़स न अंजुमन-ए-आरज़ू से बाहर खींच
आ कि मिरी जान को क़रार नहीं है
जिस ज़ख़्म की हो सकती हो तदबीर रफ़ू की
नक़्श फ़रियादी है किस की शोख़ी-ए-तहरीर का
लेता हूँ मकतब-ए-ग़म-ए-दिल में सबक़ हुनूज़
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ
जी ढूँडता है फिर वही फ़ुर्सत कि रात दिन
दिल मिरा सोज़-ए-निहाँ से बे-मुहाबा जल गया
बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
चाहिए अच्छों को जितना चाहिए
यूसुफ़ उस को कहो और कुछ न कहे ख़ैर हुई
शोरीदगी के हाथ से है सर वबाल-ए-दोश