जब कि तुझ बिन नहीं कोई मौजूद
फिर ये हंगामा ऐ ख़ुदा क्या है
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पए-नज़्र-ए-करम तोहफ़ा है शर्म-ए-ना-रसाई का
आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब
अपनी गली में मुझ को न कर दफ़्न बाद-ए-क़त्ल
काव काव-ए-सख़्त-जानी हाए-तन्हाई न पूछ
सताइश-गर है ज़ाहिद इस क़दर जिस बाग़-ए-रिज़वाँ का
दिल को नियाज़-ए-हसरत-ए-दीदार कर चुके
आगही दाम-ए-शुनीदन जिस क़दर चाहे बिछाए
गुंजाइश-ए-अदावत-ए-अग़्यार यक तरफ़
बिसात-ए-इज्ज़ में था एक दिल यक क़तरा ख़ूँ वो भी
क्यूँकर उस बुत से रखूँ जान अज़ीज़
क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हाँ
रात पी ज़मज़म पे मय और सुब्ह-दम