इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया
दर्द की दवा पाई दर्द-ए-बे-दवा पाया
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Allama Iqbal
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2458) Peoples Rate This
तू और आराइश-ए-ख़म-ए-काकुल
इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया
लो हम मरीज़-ए-इश्क़ के बीमार-दार हैं
माना-ए-दश्त-नवर्दी कोई तदबीर नहीं
मुँद गईं खोलते ही खोलते आँखें 'ग़ालिब'
मैं भी रुक रुक के न मरता जो ज़बाँ के बदले
दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ
दिल से मिटना तिरी अंगुश्त-ए-हिनाई का ख़याल
कहूँ जो हाल तो कहते हो मुद्दआ' कहिए
हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे
ज़िक्र मेरा ब-बदी भी उसे मंज़ूर नहीं
कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहाँ वाइज़