इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं
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न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता
फिर हुआ वक़्त कि हो बाल-कुशा मौज-ए-शराब
तमाशा कि ऐ महव-ए-आईना-दारी
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
बस कि फ़ा'आलुम्मा-युरीद है आज
अज़-मेहर ता-ब-ज़र्रा दिल-ओ-दिल है आइना
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'
वाँ पहुँच कर जो ग़श आता पए-हम है हम को
आए है बेकसी-ए-इश्क़ पे रोना 'ग़ालिब'
दम लिया था न क़यामत ने हनूज़
'ग़ालिब' हमें न छेड़ कि फिर जोश-ए-अश्क से
अर्ज़-ए-नाज़-ए-शोख़ी-ए-दंदाँ बराए-ख़ंदा है