इस नज़ाकत का बुरा हो वो भले हैं तो क्या
हाथ आवें तो उन्हें हाथ लगाए न बने
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है मुश्तमिल नुमूद-ए-सुवर पर वजूद-ए-बहर
क्यूँ गर्दिश-ए-मुदाम से घबरा न जाए दिल
सोहबत में ग़ैर की न पड़ी हो कहीं ये ख़ू
नहीं है ज़ख़्म कोई बख़िये के दर-ख़ुर मिरे तन में
गर ख़ामुशी से फ़ाएदा इख़्फ़ा-ए-हाल है
सादगी पर उस की मर जाने की हसरत दिल में है
आमद-ए-ख़त से हुआ है सर्द जो बाज़ार-ए-दोस्त
पूछे है क्या वजूद ओ अदम अहल-ए-शौक़ का
शोरीदगी के हाथ से है सर वबाल-ए-दोश
रौंदी हुई है कौकबा-ए-शहरयार की
तू दोस्त किसू का भी सितमगर न हुआ था
आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए