ईमाँ मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र
काबा मिरे पीछे है कलीसा मिरे आगे
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बीम-ए-रक़ीब से नहीं करते विदा-ए-होश
तुझ से क़िस्मत में मिरी सूरत-ए-क़ुफ़्ल-ए-अबजद
हो गई है ग़ैर की शीरीं-बयानी कारगर
ताअत में ता रहे न मय-ओ-अँगबीं की लाग
सियाही जैसे गिर जाए दम-ए-तहरीर काग़ज़ पर
ख़ूब था पहले से होते जो हम अपने बद-ख़्वाह
कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से
है काएनात को हरकत तेरे ज़ौक़ से
कब वो सुनता है कहानी मेरी
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन
इन आबलों से पाँव के घबरा गया था मैं
रौंदी हुई है कौकबा-ए-शहरयार की