इब्न-ए-मरयम हुआ करे कोई
मेरे दुख की दवा करे कोई
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अज़-मेहर ता-ब-ज़र्रा दिल-ओ-दिल है आइना
दीवानगी से दोश पे ज़ुन्नार भी नहीं
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
बैठा है जो कि साया-ए-दीवार-ए-यार में
कल के लिए कर आज न ख़िस्सत शराब में
गरचे है तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल पर्दा-दार-ए-राज़-ए-इश्क़
की वफ़ा हम से तो ग़ैर इस को जफ़ा कहते हैं
जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं
पी जिस क़दर मिले शब-ए-महताब में शराब
फ़ारिग़ मुझे न जान कि मानिंद-ए-सुब्ह-ओ-मेहर
रफ़्तार-ए-उम्र क़त-ए-रह-ए-इज़्तिराब है
आबरू क्या ख़ाक उस गुल की कि गुलशन में नहीं