हम भी तस्लीम की ख़ू डालेंगे
बे-नियाज़ी तिरी आदत ही सही
Anwar Masood
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Habib Jalib
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Gulzar
Mohsin Naqvi
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कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहाँ वाइज़
बार-हा देखी हैं उन की रंजिशें
बक रहा हूँ जुनूँ में क्या क्या कुछ
आशिक़ हूँ प माशूक़-फ़रेबी है मिरा काम
आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी
सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर
है सब्ज़ा-ज़ार हर दर-ओ-दीवार-ए-ग़म-कदा
दीवानगी से दोश पे ज़ुन्नार भी नहीं
गिला है शौक़ को दिल में भी तंगी-ए-जा का
ता हम को शिकायत की भी बाक़ी न रहे जा
फिर देखिए अंदाज़-ए-गुल-अफ़्शानी-ए-गुफ़्तार
वफ़ा-दारी ब-शर्त-ए-उस्तुवारी अस्ल ईमाँ है