हो चुकीं 'ग़ालिब' बलाएँ सब तमाम
एक मर्ग-ए-ना-गहानी और है
Gulzar
Parveen Shakir
Habib Jalib
Rahat Indori
Wasi Shah
Anwar Masood
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2984) Peoples Rate This
ज़िद की है और बात मगर ख़ू बुरी नहीं
बंदगी में भी वो आज़ादा ओ ख़ुद-बीं हैं कि हम
अर्ज़-ए-नाज़-ए-शोख़ी-ए-दंदाँ बराए-ख़ंदा है
बुलबुल के कारोबार पे हैं ख़ंदा-हा-ए-गुल
जुनूँ की दस्त-गीरी किस से हो गर हो न उर्यानी
कम नहीं जल्वागरी में, तिरे कूचे से बहिश्त
मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए
हैं आज क्यूँ ज़लील कि कल तक न थी पसंद
तुझ से तो कुछ कलाम नहीं लेकिन ऐ नदीम
क्या वो नमरूद की ख़ुदाई थी
है सब्ज़ा-ज़ार हर दर-ओ-दीवार-ए-ग़म-कदा
सताइश-गर है ज़ाहिद इस क़दर जिस बाग़-ए-रिज़वाँ का