है पर-ए-सरहद-ए-इदराक से अपना मसजूद
क़िबले को अहल-ए-नज़र क़िबला-नुमा कहते हैं
Habib Jalib
Jaun Eliya
Wasi Shah
Javed Akhtar
Anwar Masood
Allama Iqbal
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
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उग रहा है दर-ओ-दीवार पे सब्ज़ा 'ग़ालिब'
बे-दर-ओ-दीवार सा इक घर बनाया चाहिए
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
एक हंगामे पे मौक़ूफ़ है घर की रौनक़
मुझ को दयार-ए-ग़ैर में मारा वतन से दूर
आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी
मेरी क़िस्मत में ग़म गर इतना था
आता है दाग़-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद
ए'तिबार-ए-इश्क़ की ख़ाना-ख़राबी देखना
पिला दे ओक से साक़ी जो हम से नफ़रत है
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना
देखिए पाते हैं उश्शाक़ बुतों से क्या फ़ैज़