गो मैं रहा रहीन-ए-सितम-हा-ए-रोज़गार
लेकिन तिरे ख़याल से ग़ाफ़िल नहीं रहा
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ख़ुदा शरमाए हाथों को कि रखते हैं कशाकश में
दे मुझ को शिकायत की इजाज़त कि सितमगर
बीम-ए-रक़ीब से नहीं करते विदा-ए-होश
एक हंगामे पे मौक़ूफ़ है घर की रौनक़
रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो 'ग़ालिब'
हम से खुल जाओ ब-वक़्त-ए-मय-परस्ती एक दिन
खुलेगा किस तरह मज़मूँ मिरे मक्तूब का या रब
एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब
बे-ख़ुदी बे-सबब नहीं 'ग़ालिब'
हुजूम-ए-ग़म से याँ तक सर-निगूनी मुझ को हासिल है
रफ़्तार-ए-उम्र क़त-ए-रह-ए-इज़्तिराब है
इब्न-ए-मरयम हुआ करे कोई