गर तुझ को है यक़ीन-ए-इजाबत दुआ न माँग
यानी बग़ैर-ए-यक-दिल-ए-बे-मुद्दआ न माँग
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लेता नहीं मिरे दिल-ए-आवारा की ख़बर
कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से
और बाज़ार से ले आए अगर टूट गया
सादिक़ हूँ अपने क़ौल का 'ग़ालिब' ख़ुदा गवाह
रोने से और इश्क़ में बे-बाक हो गए
'ग़ालिब' न कर हुज़ूर में तू बार बार अर्ज़
सितम-कश मस्लहत से हूँ कि ख़ूबाँ तुझ पे आशिक़ हैं
काफ़ी है निशानी तिरा छल्ले का न देना
दाइम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं
क़फ़स में हूँ गर अच्छा भी न जानें मेरे शेवन को
दोस्त ग़म-ख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्या
हर बुल-हवस ने हुस्न-परस्ती शिआ'र की