फ़र्दा-ओ-दी का तफ़रक़ा यक बार मिट गया
कल तुम गए कि हम पे क़यामत गुज़र गई
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सौ बार बंद-ए-इश्क़ से आज़ाद हम हुए
अपना नहीं ये शेवा कि आराम से बैठें
हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायाँ मुझ से
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
चाहते हैं ख़ूब-रूयों को 'असद'
ग़लती-हा-ए-मज़ामीं मत पूछ
'असद' हम वो जुनूँ-जौलाँ गदा-ए-बे-सर-ओ-पा हैं
किसी को दे के दिल कोई नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
तू दोस्त किसू का भी सितमगर न हुआ था
दहर में नक़्श-ए-वफ़ा वजह-ए-तसल्ली न हुआ
दिल-ए-हर-क़तरा है साज़-ए-अनल-बहर