दिल ही तो है सियासत-ए-दरबाँ से डर गया
मैं और जाऊँ दर से तिरे बिन सदा किए
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तुम अपने शिकवे की बातें न खोद खोद के पूछो
मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए
क़फ़स में हूँ गर अच्छा भी न जानें मेरे शेवन को
दाइम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं
दोनों जहान दे के वो समझे ये ख़ुश रहा
हम से खुल जाओ ब-वक़्त-ए-मय-परस्ती एक दिन
मुँद गईं खोलते ही खोलते आँखें 'ग़ालिब'
विदाअ ओ वस्ल में हैं लज़्ज़तें जुदागाना
अब जफ़ा से भी हैं महरूम हम अल्लाह अल्लाह
ज़माना सख़्त कम-आज़ार है ब-जान-ए-असद
सद जल्वा रू-ब-रू है जो मिज़्गाँ उठाइए
सितम-कश मस्लहत से हूँ कि ख़ूबाँ तुझ पे आशिक़ हैं