धोता हूँ जब मैं पीने को उस सीम-तन के पाँव
रखता है ज़िद से खींच के बाहर लगन के पाँव
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शाहिद-ए-हस्ती-ए-मुतलक़ की कमर है आलम
बार-हा देखी हैं उन की रंजिशें
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'
गर तुझ को है यक़ीन-ए-इजाबत दुआ न माँग
मौत का एक दिन मुअय्यन है
हुआ है शह का मुसाहिब फिरे है इतराता
हर-चंद हो मुशाहिदा-ए-हक़ की गुफ़्तुगू
जौर से बाज़ आए पर बाज़ आएँ क्या
नाला जुज़ हुस्न-ए-तलब ऐ सितम-ईजाद नहीं
तग़ाफ़ुल-दोस्त हूँ मेरा दिमाग़-ए-अज्ज़ आली है
थी ख़बर गर्म कि 'ग़ालिब' के उड़ेंगे पुर्ज़े
क़त्अ कीजे न तअ'ल्लुक़ हम से