देखिए पाते हैं उश्शाक़ बुतों से क्या फ़ैज़
इक बरहमन ने कहा है कि ये साल अच्छा है
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दिल से तिरी निगाह जिगर तक उतर गई
इब्न-ए-मरयम हुआ करे कोई
जब तक दहान-ए-ज़ख़्म न पैदा करे कोई
शब कि वो मजलिस-फ़रोज़-ए-ख़ल्वत-ए-नामूस था
गो हाथ को जुम्बिश नहीं आँखों में तो दम है
कुछ तो पढ़िए कि लोग कहते हैं
न सताइश की तमन्ना न सिले की परवा
हासिल से हाथ धो बैठ ऐ आरज़ू-ख़िरामी
अफ़्सोस कि दंदाँ का किया रिज़्क़ फ़लक ने
है किस क़दर हलाक-ए-फ़रेब-ए-वफ़ा-ए-गुल
बोसा देते नहीं और दिल पे है हर लहज़ा निगाह
मुनहसिर मरने पे हो जिस की उमीद