दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होते तक
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Habib Jalib
Parveen Shakir
Rahat Indori
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(5142) Peoples Rate This
बे-ए'तिदालियों से सुबुक सब में हम हुए
रखियो 'ग़ालिब' मुझे इस तल्ख़-नवाई में मुआफ़
छोड़ा न रश्क ने कि तिरे घर का नाम लूँ
हुस्न-ए-बे-परवा ख़रीदार-ए-माता-ए-जल्वा है
है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँ
उधर वो बद-गुमानी है इधर ये ना-तवानी है
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे
दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ
करे है बादा तिरे लब से कस्ब-ए-रंग-ए-फ़रोग़
दैर नहीं हरम नहीं दर नहीं आस्ताँ नहीं
वो मिरी चीन-ए-जबीं से ग़म-ए-पिन्हाँ समझा
तुम जानो तुम को ग़ैर से जो रस्म-ओ-राह हो