दम लिया था न क़यामत ने हनूज़
फिर तिरा वक़्त-ए-सफ़र याद आया
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Habib Jalib
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Gulzar
Javed Akhtar
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2193) Peoples Rate This
गई वो बात कि हो गुफ़्तुगू तो क्यूँकर हो
काबे में जा रहा तो न दो ताना क्या कहें
वाँ पहुँच कर जो ग़श आता पए-हम है हम को
जानता हूँ सवाब-ए-ताअत-ओ-ज़ोहद
छोड़ूँगा मैं न उस बुत-ए-काफ़िर का पूजना
गुलशन में बंदोबस्त ब-रंग-ए-दिगर है आज
रश्क कहता है कि उस का ग़ैर से इख़्लास हैफ़
तू ने क़सम मय-कशी की खाई है 'ग़ालिब'
'ग़ालिब' तिरा अहवाल सुना देंगे हम उन को
सादगी पर उस की मर जाने की हसरत दिल में है
नाला जुज़ हुस्न-ए-तलब ऐ सितम-ईजाद नहीं
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले