छोड़ा न रश्क ने कि तिरे घर का नाम लूँ
हर इक से पूछता हूँ कि जाऊँ किधर को मैं
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हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
हुई जिन से तवक़्क़ो ख़स्तगी की दाद पाने की
वो चीज़ जिस के लिए हम को हो बहिश्त अज़ीज़
न पूछ नुस्ख़ा-ए-मरहम जराहत-ए-दिल का
ग़ैर लें महफ़िल में बोसे जाम के
कितने शीरीं हैं तेरे लब कि रक़ीब
कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को
होगा कोई ऐसा भी कि 'ग़ालिब' को न जाने
वाँ पहुँच कर जो ग़श आता पए-हम है हम को
वो आ के ख़्वाब में तस्कीन-ए-इज़्तिराब तो दे
किसी को दे के दिल कोई नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो
आता है दाग़-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद