चलता हूँ थोड़ी दूर हर इक तेज़-रौ के साथ
पहचानता नहीं हूँ अभी राहबर को मैं
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लरज़ता है मिरा दिल ज़हमत-ए-मेहर-ए-दरख़्शाँ पर
छोड़ा न रश्क ने कि तिरे घर का नाम लूँ
आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए
दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ
दैर नहीं हरम नहीं दर नहीं आस्ताँ नहीं
मैं भी रुक रुक के न मरता जो ज़बाँ के बदले
क़यामत है कि सुन लैला का दश्त-ए-क़ैस में आना
लूँ वाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता से यक-ख़्वाब-ए-खुश वले
जब तक दहान-ए-ज़ख़्म न पैदा करे कोई
सताइश-गर है ज़ाहिद इस क़दर जिस बाग़-ए-रिज़वाँ का
सीखे हैं मह-रुख़ों के लिए हम मुसव्वरी
रफ़्तार-ए-उम्र क़त-ए-रह-ए-इज़्तिराब है