अगर ग़फ़लत से बाज़ आया जफ़ा की
तलाफ़ी की भी ज़ालिम ने तो क्या की
Wasi Shah
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Anwar Masood
Rahat Indori
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1157) Peoples Rate This
लब-ए-ख़ुश्क दर-तिश्नगी-मुर्दगाँ का
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पर दम निकले
मैं और बज़्म-ए-मय से यूँ तिश्ना-काम आऊँ
ज़ुल्मत-कदे में मेरे शब-ए-ग़म का जोश है
लिखते रहे जुनूँ की हिकायात-ए-ख़ूँ-चकाँ
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
हो चुकीं 'ग़ालिब' बलाएँ सब तमाम
कहूँ जो हाल तो कहते हो मुद्दआ' कहिए
खुलता किसी पे क्यूँ मिरे दिल का मोआमला
इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही
घर में था क्या कि तिरा ग़म उसे ग़ारत करता
आज हम अपनी परेशानी-ए-ख़ातिर उन से