आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक
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दाइम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं
सँभलने दे मुझे ऐ ना-उमीदी क्या क़यामत है
है मुश्तमिल नुमूद-ए-सुवर पर वजूद-ए-बहर
ज़माना सख़्त कम-आज़ार है ब-जान-ए-असद
सद जल्वा रू-ब-रू है जो मिज़्गाँ उठाइए
गर किया नासेह ने हम को क़ैद अच्छा यूँ सही
हुई मुद्दत कि 'ग़ालिब' मर गया पर याद आता है
कहते हुए साक़ी से हया आती है वर्ना
'असद' हम वो जुनूँ-जौलाँ गदा-ए-बे-सर-ओ-पा हैं
लब-ए-ख़ुश्क दर-तिश्नगी-मुर्दगाँ का
लेता हूँ मकतब-ए-ग़म-ए-दिल में सबक़ हुनूज़
आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब