आए है बेकसी-ए-इश्क़ पे रोना 'ग़ालिब'
किस के घर जाएगा सैलाब-ए-बला मेरे बअ'द
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Gulzar
Habib Jalib
Anwar Masood
Javed Akhtar
Wasi Shah
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1829) Peoples Rate This
आमद-ए-सैलाब-ए-तूफ़ान-ए-सदा-ए-आब है
नक़्श फ़रियादी है किस की शोख़ी-ए-तहरीर का
निस्यह-ओ-नक़्द-ए-दो-आलम की हक़ीक़त मालूम
आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए
काबे में जा रहा तो न दो ताना क्या कहें
बोसा कैसा यही ग़नीमत है
'ग़ालिब'-ए-ख़स्ता के बग़ैर कौन से काम बंद हैं
है गै़ब-ए-ग़ैब जिस को समझते हैं हम शुहूद
जान तुम पर निसार करता हूँ
क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हाँ
लताफ़त बे-कसाफ़त जल्वा पैदा कर नहीं सकती
क़तरा-ए-मय बस-कि हैरत से नफ़स-परवर हुआ