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पए-नज़्र-ए-करम तोहफ़ा है शर्म-ए-ना-रसाई का - ग़ालिब कविता - Darsaal

पए-नज़्र-ए-करम तोहफ़ा है शर्म-ए-ना-रसाई का

पए-नज़्र-ए-करम तोहफ़ा है शर्म-ए-ना-रसाई का

ब-खूँ-ग़ल्तीदा-ए-सद-रंग दावा पारसाई का

न हो हुस्न-ए-तमाशा-दोस्त रुस्वा बेवफ़ाई का

ब-मोहर-ए-सद-नज़र साबित है दावा पारसाई का

ज़कात-ए-हुस्न दे ऐ जल्वा-ए-बीनिश कि मेहर-आसा

चराग़-ए-ख़ाना-ए-दर्वेश हो कासा गदाई का

न मारा जान कर बे-जुर्म ग़ाफ़िल तेरी गर्दन पर

रहा मानिंद-ए-ख़ून-ए-बे-गुनह हक़ आश्नाई का

तमन्ना-ए-ज़बाँ महव-ए-सिपास-ए-बे-ज़बानी है

मिटा जिस से तक़ाज़ा शिकवा-ए-बे-दस्त-ओ-पाई का

वही इक बात है जो याँ नफ़स वाँ निकहत-ए-गुल है

चमन का जल्वा बाइस है मिरी रंगीं-नवाई का

दहान-ए-हर-बुत-ए-पैग़ारा-जू ज़ंजीर-ए-रुस्वाई

अदम तक बेवफ़ा चर्चा है तेरी बेवफ़ाई का

न दे नाले को इतना तूल 'ग़ालिब' मुख़्तसर लिख दे

कि हसरत-संज हूँ अर्ज़-ए-सितम-हा-ए-जुदाई का

जहाँ मिट जाए सई-ए-दीद ख़िज़्रआबाद-ए-आसाइश

ब-जेब-ए-हर-निगह पिन्हाँ है हासिल रहनुमाई का

ब-इज्ज़-आबाद वहम-ए-मुद्दआ तस्लीम-ए-शोख़ी है

तग़ाफ़ुल को न कर मसरूफ़-ए-तम्कीं-आज़माई का

'असद' का क़िस्सा तूलानी है लेकिन मुख़्तसर ये है

कि हसरत-कश रहा अर्ज़-ए-सितम-हा-ए-जुदाई का

हवस गुस्ताख़ी-ए-आईना तकलीफ़-ए-नज़र-बाज़ी

ब-जेब-ए-आरज़ू पिन्हाँ है हासिल दिलरुबाई का

नज़र-बाज़ी तिलिस्म-ए-वहशत-आबाद-ए-परिस्ताँ है

रहा बेगाना-ए-तासीर अफ़्सूँ आश्नाई का

न पाया दर्दमंद-ए-दूरी-ए-यारान-ए-यक-दिल ने

सवाद-ए-ख़त्त-ए-पेशानी से नुस्ख़ा मोम्याई का

'असद' ये इज्ज़-ओ-बे-सामानी-ए-फ़िरऔन-ए-तौअम है

जिसे तू बंदगी कहता है दावा है ख़ुदाई का

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