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नक़्श फ़रियादी है किस की शोख़ी-ए-तहरीर का - ग़ालिब कविता - Darsaal

नक़्श फ़रियादी है किस की शोख़ी-ए-तहरीर का

नक़्श फ़रियादी है किस की शोख़ी-ए-तहरीर का

काग़ज़ी है पैरहन हर पैकर-ए-तस्वीर का

काव काव-ए-सख़्त-जानी हाए-तन्हाई न पूछ

सुब्ह करना शाम का लाना है जू-ए-शीर का

जज़्बा-ए-बे-इख़्तियार-ए-शौक़ देखा चाहिए

सीना-ए-शमशीर से बाहर है दम शमशीर का

आगही दाम-ए-शुनीदन जिस क़दर चाहे बिछाए

मुद्दआ अन्क़ा है अपने आलम-ए-तक़रीर का

बस-कि हूँ 'ग़ालिब' असीरी में भी आतिश ज़ेर-ए-पा

मू-ए-आतिश दीदा है हल्क़ा मिरी ज़ंजीर का

आतिशीं-पा हूँ गुदाज़-ए-वहशत-ए-ज़िन्दाँ न पूछ

मू-ए-आतिश दीदा है हर हल्क़ा याँ ज़ंजीर का

शोख़ी-ए-नैरंग सैद-ए-वहशत-ए-ताऊस है

दाम-ए-सब्ज़ा में है परवाज़-ए-चमन तस्ख़ीर का

लज़्ज़त-ए-ईजाद-ए-नाज़ अफ़सून-ए-अर्ज़-ज़ौक़-ए-क़त्ल

न'अल आतिश में है तेग़-ए-यार से नख़चीर का

ख़िश्त पुश्त-ए-दस्त-ए-इज्ज़ ओ क़ालिब आग़ोश-ए-विदा'अ

पुर हुआ है सैल से पैमाना किस ता'मीर का

वहशत-ए-ख़्वाब-ए-अदम शोर-ए-तमाशा है 'असद'

जो मज़ा जौहर नहीं आईना-ए-ताबीर का

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