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न होगा यक-बयाबाँ माँदगी से ज़ौक़ कम मेरा - ग़ालिब कविता - Darsaal

न होगा यक-बयाबाँ माँदगी से ज़ौक़ कम मेरा

न होगा यक-बयाबाँ माँदगी से ज़ौक़ कम मेरा

हबाब-ए-मौजा-ए-रफ़्तार है नक़्श-ए-क़दम मेरा

मोहब्बत थी चमन से लेकिन अब ये बे-दिमाग़ी है

कि मौज-ए-बू-ए-गुल से नाक में आता है दम मेरा

रह-ए-ख़्वाबीदा थी गर्दन-कश-ए-यक-दर्स-ए-आगाही

ज़मीं को सैली-ए-उस्ताद है नक़्श-ए-क़दम मेरा

सुराग़-आवारा-ए-अर्ज़-ए-दो-आलम शोर-ए-महशर हूँ

पर-अफ़्शाँ है ग़ुबार आँ सू-ए-सहरा-ए-अदम मेरा

हवा-ए-सुब्ह यक-आलम गरेबाँ चाकी-ए-गुल है

दहान-ए-ज़ख़्म पैदा कर अगर खाता है ग़म मेरा

न हो वहशत-कश-ए-दर्स-ए-सराब-ए-सत्र-ए-आगाही

मैं गर्द-ए-राह हूँ बे-मुद्दआ है पेच-ओ-ख़म मेरा

'असद' वहशत-परस्त-ए-गोशा-ए-तन्हाई-ए-दिल है

ब-रंग-ए-मौज-ए-मय ख़म्याज़ा-ए-साग़र है रम मेरा

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