मत मर्दुमक-ए-दीदा में समझो ये निगाहें

मत मर्दुमक-ए-दीदा में समझो ये निगाहें

हैं जम्अ सुवैदा-ए-दिल-ए-चश्म में आहें

किस दिल पे है अज़्म-ए-सफ़-ए-मिज़्गान-ए-ख़ुद-आरा

आईने के पायाब से उतरी हैं सिपाहें

दैर-ओ-हरम आईना-ए-तकरार-ए-तमन्ना

वामांदगी-ए-शौक़ तराशे है पनाहें

जूँ मर्दुमक-ए-चश्म से हों जम्अ' निगाहें

ख़्वाबीदा ब-हैरत-कदा-ए-दाग़ हैं आहें

फिर हल्क़ा-ए-काकुल में पड़ीं दीद की राहें

जूँ दूद फ़राहम हुईं रौज़न में निगाहें

पाया सर-ए-हर-ज़र्रा जिगर-गोशा-ए-वहशत

हैं दाग़ से मामूर शक़ाइक़ की कुलाहें

ये मतला 'असद' जौहर-ए-अफ़्सून-ए-सुख़न हो

गर अर्ज़-ए-तपाक-ए-जिगर-ए-सोख़्ता चाहें

हैरत-कश-ए-यक-जल्वा-ए-मअनी हैं निगाहें

खींचूँ हूँ सुवैदा-ए-दिल-ए-चश्म से आहें

(3142) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Mat Mardumak-e-dida Mein Samjho Ye Nigahen In Hindi By Famous Poet Mirza Ghalib. Mat Mardumak-e-dida Mein Samjho Ye Nigahen is written by Mirza Ghalib. Complete Poem Mat Mardumak-e-dida Mein Samjho Ye Nigahen in Hindi by Mirza Ghalib. Download free Mat Mardumak-e-dida Mein Samjho Ye Nigahen Poem for Youth in PDF. Mat Mardumak-e-dida Mein Samjho Ye Nigahen is a Poem on Inspiration for young students. Share Mat Mardumak-e-dida Mein Samjho Ye Nigahen with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.