Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_d312b8bc6a53032cac7b0e1eb14f6e3a, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
मंज़ूर थी ये शक्ल तजल्ली को नूर की - ग़ालिब कविता - Darsaal

मंज़ूर थी ये शक्ल तजल्ली को नूर की

मंज़ूर थी ये शक्ल तजल्ली को नूर की

क़िस्मत खुली तिरे क़द ओ रुख़ से ज़ुहूर की

इक ख़ूँ-चकाँ कफ़न में करोड़ों बनाओ हैं

पड़ती है आँख तेरे शहीदों पे हूर की

वाइ'ज़ न तुम पियो न किसी को पिला सको

क्या बात है तुम्हारी शराब-ए-तुहूर की

लड़ता है मुझ से हश्र में क़ातिल कि क्यूँ उठा

गोया अभी सुनी नहीं आवाज़ सूर की

आमद बहार की है जो बुलबुल है नग़्मा-संज

उड़ती सी इक ख़बर है ज़बानी तुयूर की

गो वाँ नहीं पे वाँ के निकाले हुए तो हैं

काबे से इन बुतों को भी निस्बत है दूर की

क्या फ़र्ज़ है कि सब को मिले एक सा जवाब

आओ न हम भी सैर करें कोह-ए-तूर की

गर्मी सही कलाम में लेकिन न इस क़दर

की जिस से बात उस ने शिकायत ज़रूर की

'ग़ालिब' गर इस सफ़र में मुझे साथ ले चलें

हज का सवाब नज़्र करूँगा हुज़ूर की

(1251) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Manzur Thi Ye Shakl Tajalli Ko Nur Ki In Hindi By Famous Poet Mirza Ghalib. Manzur Thi Ye Shakl Tajalli Ko Nur Ki is written by Mirza Ghalib. Complete Poem Manzur Thi Ye Shakl Tajalli Ko Nur Ki in Hindi by Mirza Ghalib. Download free Manzur Thi Ye Shakl Tajalli Ko Nur Ki Poem for Youth in PDF. Manzur Thi Ye Shakl Tajalli Ko Nur Ki is a Poem on Inspiration for young students. Share Manzur Thi Ye Shakl Tajalli Ko Nur Ki with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.