गर ख़ामुशी से फ़ाएदा इख़्फ़ा-ए-हाल है
गर ख़ामुशी से फ़ाएदा इख़्फ़ा-ए-हाल है
ख़ुश हूँ कि मेरी बात समझनी मुहाल है
किस को सुनाऊँ हसरत-ए-इज़हार का गिला
दिल फ़र्द-ए-जमा-ओ-ख़र्च ज़बाँ-हा-ए-लाल है
किस पर्दे में है आइना-पर्दाज़ ऐ ख़ुदा
रहमत कि उज़्र-ख़्वाह-ए-लब-ए-बे-सवाल है
है है ख़ुदा-न-ख़्वास्ता वो और दुश्मनी
ऐ शौक़-ए-मुन्फ़इल ये तुझे क्या ख़याल है
मुश्कीं लिबास-ए-काबा अली के क़दम से जान
नाफ़-ए-ज़मीन है न कि नाफ़-ए-ग़ज़ाल है
वहशत पे मेरी अरसा-ए-आफ़ाक़ तंग था
दरिया ज़मीन को अरक़-ए-इंफ़िआ'ल है
हस्ती के मत फ़रेब में आ जाइयो 'असद'
आलम तमाम हल्क़ा-ए-दाम-ए-ख़याल है
पहलू-तही न कर ग़म-ओ-अंदोह से 'असद'
दिल वक़्फ़-ए-दर्द कर कि फ़क़ीरों का माल है
(1926) Peoples Rate This