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फ़रियाद की कोई लय नहीं है - ग़ालिब कविता - Darsaal

फ़रियाद की कोई लय नहीं है

फ़रियाद की कोई लय नहीं है

नाला पाबंद-ए-नय नहीं है

क्यूँ बोते हैं बाग़बाँ तोंबे

गर बाग़ गदा-ए-मय नहीं है

हर-चंद हर एक शय में तू है

पर तुझ सी कोई शय नहीं है

हाँ खाइयो मत फ़रेब-ए-हस्ती

हर-चंद कहें कि है नहीं है

शादी से गुज़र कि ग़म न होवे

उरदी जो न हो तो दै नहीं है

क्यूँ रद्द-ए-क़दह करे है ज़ाहिद

मय है ये मगस की क़य नहीं है

हस्ती है न कुछ अदम है 'ग़ालिब'

आख़िर तू क्या है ऐ नहीं है

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