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चश्म-ए-ख़ूबाँ ख़ामुशी में भी नवा-पर्दाज़ है - ग़ालिब कविता - Darsaal

चश्म-ए-ख़ूबाँ ख़ामुशी में भी नवा-पर्दाज़ है

चश्म-ए-ख़ूबाँ ख़ामुशी में भी नवा-पर्दाज़ है

सुर्मा तो कहवे कि दूद-ए-शोला-ए-आवाज़ है

पैकर-ए-उश्शाक़ साज़-ए-ताला-ए-ना-साज़ है

नाला गोया गर्दिश-ए-सैय्यारा की आवाज़ है

दस्त-गाह-ए-दीदा-ए-खूँ-बार-ए-मजनूँ देखना

यक-बयाबाँ जल्वा-ए-गुल फ़र्श-ए-पा-अंदाज़ है

चश्म-ए-ख़ूबाँ मै-फ़रोश-ए-नश्शा-ज़ार-ए-नाज़ है

सुर्मा गोया मौज-ए-दूद-ए-शोला-ए-आवाज़ है

है सरीर-ए-ख़ामा रेज़िश-हा-ए-इस्तिक़्बाल-ए-नाज़

नामा ख़ुद पैग़ाम को बाल-ओ-पर-ए-परवाज़ है

सर-नाविश्त-ए-इज़्तिराब-अंजामी-ए-उल्फ़त न पूछ

नाल-ए-ख़ामा ख़ार-ख़ार-ए-ख़ातिर-ए-आगाज़ है

शोख़ी-ए-इज़्हार ग़ैर-अज़-वहशत-ए-मजनूँ नहीं

लैला-ए-मानी 'असद' महमिल-नशीन-ए-राज़ है

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