'असद' हम वो जुनूँ-जौलाँ गदा-ए-बे-सर-ओ-पा हैं
कि है सर-पंजा-ए-मिज़्गान-ए-आहू पुश्त-ख़ार अपना
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चाहिए अच्छों को जितना चाहिए
रखियो 'ग़ालिब' मुझे इस तल्ख़-नवाई में मुआफ़
फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया
जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं
बात पर वाँ ज़बान कटती है
याद है शादी में भी हंगामा-ए-या-रब मुझे
गर न अंदोह-ए-शब-ए-फ़ुर्क़त बयाँ हो जाएगा
शाहिद-ए-हस्ती-ए-मुतलक़ की कमर है आलम
अज़-मेहर ता-ब-ज़र्रा दिल-ओ-दिल है आइना
बीम-ए-रक़ीब से नहीं करते विदा-ए-होश
देखिए पाते हैं उश्शाक़ बुतों से क्या फ़ैज़
ज़माना सख़्त कम-आज़ार है ब-जान-ए-असद