Friendship Poetry of Mirza Ghalib
नाम | ग़ालिब |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Mirza Ghalib |
जन्म की तारीख | 1797 |
मौत की तिथि | 1869 |
जन्म स्थान | Delhi |
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह
ये फ़ित्ना आदमी की ख़ाना-वीरानी को क्या कम है
वा-हसरता कि यार ने खींचा सितम से हाथ
सँभलने दे मुझे ऐ ना-उमीदी क्या क़यामत है
रश्क कहता है कि उस का ग़ैर से इख़्लास हैफ़
मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए
क्यूँ जल गया न ताब-ए-रुख़-ए-यार देख कर
जब तक कि न देखा था क़द-ए-यार का आलम
गुंजाइश-ए-अदावत-ए-अग़्यार यक तरफ़
फ़ाएदा क्या सोच आख़िर तू भी दाना है 'असद'
एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब
दोस्त ग़म-ख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्या
दिल में ज़ौक़-ए-वस्ल ओ याद-ए-यार तक बाक़ी नहीं
बैठा है जो कि साया-ए-दीवार-ए-यार में
आशिक़ हूँ प माशूक़-फ़रेबी है मिरा काम
ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना
ज़ख़्म पर छिड़कें कहाँ तिफ़्लान-ए-बे-परवा नमक
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
वो मिरी चीन-ए-जबीं से ग़म-ए-पिन्हाँ समझा
तू दोस्त किसू का भी सितमगर न हुआ था
तपिश से मेरी वक़्फ़-ए-कशमकश हर तार-ए-बिस्तर है
तग़ाफ़ुल-दोस्त हूँ मेरा दिमाग़-ए-अज्ज़ आली है
सीमाब-पुश्त गर्मी-ए-आईना दे है हम
शौक़ हर रंग रक़ीब-ए-सर-ओ-सामाँ निकला
शब कि बर्क़-ए-सोज़-ए-दिल से ज़हरा-ए-अब्र आब था
सताइश-गर है ज़ाहिद इस क़दर जिस बाग़-ए-रिज़वाँ का
सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर
रुख़-ए-निगार से है सोज़-ए-जावेदानी-ए-शमा
रश्क कहता है कि उस का ग़ैर से इख़्लास हैफ़