ये दीवाने हैं महव-ए-दीद दिलबर
नहीं कुछ मानते याँ को न वाँ को
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ये दिल वो है कि ग़मों से जिसे फ़राग़ नहीं
जब कि ज़ुल्फ़ उस की गले खा बल पड़ी
बे-ग़मी तर्क-ए-आलाइक़ है सदा 'अज़फ़रिया'
तुम खुल रहे थे ग़ैर से छाँव तले खड़े
ओ अतारिद ज़ुहल-ए-नहिस से टुक माँग मिदाद
जी में क्या क्या मिरी उमाहा था
जो आया यार तो तू हो चला ग़श ऐ दिवाने दिल
तू आशिक़ों के तईं जब से क़त्ल-ए-नाज़ किया
ताक लागी तिरी दुख़्तर से हमारी ऐ ताक
किया है तू ने तो जान-ए-जहाँ जहाँ तस्ख़ीर
देख अपने माइलों को कि हैं दिल जले पड़े
तिरी तेग़ अबरू की टुक सामने कर देखें तो