सूनी गई में हुई यार से मुढभेड़ आज
पूछो कोई किस लिए मुँह पे कर ओझल गया
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'अज़फ़री' ग़ुंचा-ए-दिल बंद और आई है बहार
समझ घर यार का मैं शह-नशीन-ए-दिल को धोता हूँ
ग़ैरों के साथ गाते जाते हो
हमें छोड़ कीधर सिधारे पियारे
ताक लागी तिरी दुख़्तर से हमारी ऐ ताक
तुम खुल रहे थे ग़ैर से छाँव तले खड़े
हैं जाने-बूझे यार हम, हम साथ अन-जानी न कर
क़सम मय की मुझ बिन है मेरे लहू की
हम फ़रामोश की फ़रामोशी
दिल लिया ताब-ओ-तवाँ ले चुका जाँ भी ले ले
ढोलकी धम-धमी ख़ंजरी भी बजानी जानी
किस ज़माने की ये दुश्मन थी मिरी