ओसों गई है प्यास कहीं दीदा-ए-नमीं
बुझता है आँसुओं से कहाँ दिल फुंका हुआ
Habib Jalib
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Rahat Indori
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Parveen Shakir
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सूनी गई में हुई यार से मुढभेड़ आज
एक बर्छी से मार जाते हो
हम गुनहगारों के क्या ख़ून का फीका था रंग
गिरह जो काम में डाले है पंजा-ए-तक़दीर
जान आ बर में कि फिर कुछ ग़म-ओ-वसवास नहीं
ऐ मुसव्विर शिताब हो कि अभी
बह चुका ख़ून-ए-दिल आँख तक आ पहुँचा सैल
तुझ बिन और हम को सूझता ही नहीं
है जानी तुझ में सब ख़ूबी प जाँ सा
जो आया यार तो तू हो चला ग़श ऐ दिवाने दिल
काकुल नहीं लटकते कुछ उन की छातियों पर
तुम खुल रहे थे ग़ैर से छाँव तले खड़े