जिलाओ मारो दुरकारो बुला लो गालियाँ दे लो
करो जो चाहो हम किस बात से इकराह रखते हैं
Gulzar
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Jaun Eliya
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हमें छोड़ कीधर सिधारे पियारे
ये दीवाने हैं महव-ए-दीद दिलबर
एक बर्छी से मार जाते हो
ताक लागी तिरी दुख़्तर से हमारी ऐ ताक
क़सम मय की मुझ बिन है मेरे लहू की
हम इश्क़ तेरे हाथ से क्या क्या न देखीं हालतें
ये दिल वो है कि ग़मों से जिसे फ़राग़ नहीं
कौन कहता है कि तू ने हमें हट कर मारा
किया है तू ने तो जान-ए-जहाँ जहाँ तस्ख़ीर
इस की सूरत को देख कर भूले
ज़िंदगी चुभ रही है काँटा सी
मह-रू न हो और चाँदनी वो रात है किस काम की