हम फ़रामोश की फ़रामोशी
और तुम याद उम्र भर भूले
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तुम खुल रहे थे ग़ैर से छाँव तले खड़े
सोज़-ए-शम्-ए-हिज्र से शब जल गए
जबकि ग़ुस्से के बीच आते हो
समझ घर यार का मैं शह-नशीन-ए-दिल को धोता हूँ
ऐ मुसव्विर शिताब हो कि अभी
सूनी गई में हुई यार से मुढभेड़ आज
तू बातों में बिगड़ जाता है मुझ से
भौवें चढ़ी हैं और है तेवर झुका हुआ
बे-ग़मी तर्क-ए-आलाइक़ है सदा 'अज़फ़रिया'
हम इश्क़ तेरे हाथ से क्या क्या न देखीं हालतें
ख़िज़ाँ तन्हा न सैर-ए-बोस्ताँ को जा बिगाड़ आई
ये दिल वो है कि ग़मों से जिसे फ़राग़ नहीं