है जानी तुझ में सब ख़ूबी प जाँ सा
तू इक दम में बिछड़ जाता है मुझ से
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क़सम मय की मुझ बिन है मेरे लहू की
आते आते तर्फ़ मेरे मुड़ के फिर कीधर चले
काकुल नहीं लटकते कुछ उन की छातियों पर
ये दिल वो है कि ग़मों से जिसे फ़राग़ नहीं
ये दीवाने हैं महव-ए-दीद दिलबर
रफ़ू जेब-ए-मजनूँ हुआ कब ऐ नासेह
तुझ में जिस दम धियान जाता है
ताक लागी तिरी दुख़्तर से हमारी ऐ ताक
दोस्ती में तिरी बस हम ने बहुत दुख झेले
ओ अतारिद ज़ुहल-ए-नहिस से टुक माँग मिदाद
हमें छोड़ कीधर सिधारे पियारे
किस ज़माने की ये दुश्मन थी मिरी