बे-ग़मी तर्क-ए-आलाइक़ है सदा 'अज़फ़रिया'
जिस को दुनिया से इलाक़ा नहीं ग़मनाक नहीं
Ahmad Faraz
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Allama Iqbal
Anwar Masood
Jaun Eliya
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
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किस ज़माने की ये दुश्मन थी मिरी
दिल लिया ताब-ओ-तवाँ ले चुका जाँ भी ले ले
ताक लागी तिरी दुख़्तर से हमारी ऐ ताक
ज़िंदगी चुभ रही है काँटा सी
हम फ़रामोश की फ़रामोशी
शिताबी अपने दीवाने को कर बंद
हैं जाने-बूझे यार हम, हम साथ अन-जानी न कर
हमें छोड़ कीधर सिधारे पियारे
हम इश्क़ तेरे हाथ से क्या क्या न देखीं हालतें
है जानी तुझ में सब ख़ूबी प जाँ सा
ये दीवाने हैं महव-ए-दीद दिलबर
नम-ए-अश्क आँखों से ढलने लगा है