'अज़फ़री' ग़ुंचा-ए-दिल बंद और आई है बहार
सैर-ए-गुल को कि ये शायद ब-तकल्लुफ़ खिल ले
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Gulzar
Habib Jalib
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(605) Peoples Rate This
आते आते तर्फ़ मेरे मुड़ के फिर कीधर चले
हम गुनहगारों के क्या ख़ून का फीका था रंग
सीने का अब तक है ज़ख़्म आला मियाँ
दिल लिया ताब-ओ-तवाँ ले चुका जाँ भी ले ले
गिरह जो काम में डाले है पंजा-ए-तक़दीर
शिताबी अपने दीवाने को कर बंद
तू आशिक़ों के तईं जब से क़त्ल-ए-नाज़ किया
ढोलकी धम-धमी ख़ंजरी भी बजानी जानी
जब कि ज़ुल्फ़ उस की गले खा बल पड़ी
बह चुका ख़ून-ए-दिल आँख तक आ पहुँचा सैल
ग़ुबार दिल में भरा किर्किरी सलाम-अलैक