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सीने का अब तक है ज़ख़्म आला मियाँ - मिर्ज़ा अज़फ़री कविता - Darsaal

सीने का अब तक है ज़ख़्म आला मियाँ

सीने का अब तक है ज़ख़्म आला मियाँ

है अनी मिज़्गाँ की या भाला मियाँ

किस ज़माने की ये दुश्मन थी मिरी

इस मोहब्बत का हो मुँह काला मियाँ

इश्क़ में तेरे लुटे सब दुर्र-ए-अश्क

ऐसी वर-ख़र्ची ने घर घाला मियाँ

जो बिसात अपनी में था होश-ओ-ख़िरद

झोका झोली में तिरे लाला मियाँ

इश्क़ के ज़ेवर को आँसू मत कहो

मोतियों की है ये गुल-माला मियाँ

खोल पट घुँघट का दिखलाया जमाल

मेरे ताले का खुला ताला मियाँ

सर्व-ए-बाला को तिरे तो देख कर

हो गई दुनिया तह-ओ-बाला मियाँ

नेकी मेरी और बदी अपनी को जान

सब बदी को अपनी तो ढाला मियाँ

टाला, बाला 'अज़फ़री' को दे गए

कान का अपने दिखा बाला मियाँ

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