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किया है तू ने तो जान-ए-जहाँ जहाँ तस्ख़ीर - मिर्ज़ा अज़फ़री कविता - Darsaal

किया है तू ने तो जान-ए-जहाँ जहाँ तस्ख़ीर

किया है तू ने तो जान-ए-जहाँ जहाँ तस्ख़ीर

हुआ है हुस्न का शोहरा तिरा तो आलम-गीर

नहा के बाल जो सरकाए गोरे चेहरे से

तो जैसे चाँद निकल आया काली बदरी चीर

न ख़ूब-रू तुझे कह सकते हैं न महर न माह

अजब गढ़ी यद-ए-क़ुदरत ने कुछ तिरी तस्वीर

जहाँ पड़ा तिरा साया उगा वहाँ गुलज़ार

क़दम धरा है तू जिस जा बना है मुश्क-ओ-अबीर

शिकार कर लिया सारा जहाँ शिकार-अंदाज़

हुआ है पार निगह से तिरी निगाह का तीर

हुए न ज़ब्ह न फ़ितराक तक ये जा पहुँचे

इधर उधर हैं तड़पते ये नीम-जाँ नख़चीर

है 'अज़फ़री' वो सियह-बख़्त साँप काटा भी

पड़ी है ज़ुल्फ़ की आ जिस के पाँव में ज़ंजीर

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Kiya Hai Tu Ne To Jaan-e-jahan Jahan TasKHir In Hindi By Famous Poet Mirza Azfari. Kiya Hai Tu Ne To Jaan-e-jahan Jahan TasKHir is written by Mirza Azfari. Complete Poem Kiya Hai Tu Ne To Jaan-e-jahan Jahan TasKHir in Hindi by Mirza Azfari. Download free Kiya Hai Tu Ne To Jaan-e-jahan Jahan TasKHir Poem for Youth in PDF. Kiya Hai Tu Ne To Jaan-e-jahan Jahan TasKHir is a Poem on Inspiration for young students. Share Kiya Hai Tu Ne To Jaan-e-jahan Jahan TasKHir with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.