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हमें छोड़ कीधर सिधारे पियारे - मिर्ज़ा अज़फ़री कविता - Darsaal

हमें छोड़ कीधर सिधारे पियारे

हमें छोड़ कीधर सिधारे पियारे

हैं मुश्ताक़ दीदे तुम्हारे पियारे

इन आँखों को बादाम ओ नर्गिस से निस्बत

इधर टुक तो देखो हमारे पियारे

ये सर्व-ए-सही और शमशाद सारे

तुम्हारे क़द ऊपर से वारे पियारे

ये ख़ूबान-ए-हिन्दी-ओ-चीन-ओ-चिगिल भी

तसद्दुक़ गए तुझ पे आरे पियारे

तुझे टुकटुकी बाँध सब तक रहे हैं

फ़लक तक भी बिन आँख तारे पियारे

लिबास-ए-ज़र-ओ-गुल की हाजत नहीं है

तुझे ऐ ख़ुदा के सँवारे पियारे

तिरी नीची इन चितवनों के ठगों ने

बिदेसी बनाव ही मारे पियारे

उसे साई देना और इस को बधाई

ये छल-बल बताओ तो बारे पियारे

पड़ो पुटकी ऐसे तुम्हारे गुनों पर

तुम्हें हम तो समझा के हारे पियारे

वो मज्लिस की मज्लिस जमी आन कर फिर

हुए हम हैं आख़िर किनारे प्यारे

हटा तिफ़्ल-ए-दिल 'अज़फ़री' का तिरे देख

वो बादाम ओ आम और छुहारे प्यारे

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